मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

वो दिन दूर नहीं जब खत्म हो जायेंगे भारत से कागज के नोट और सिक्के

क्या आपने कभी ये विचार किया है कि काश इस कागज के नोट और सिक्कों का कोई आसान सा विकल्प होता....!आज की डिजिटल दुनिया में ये भी डिजिटल हो जाता जिससे एक-एक पैसे का लेखा-जोखा हो जाता,खुदरे की चिन्ता नहीं रहती,ना चोर चुरा पाते,ना डकैत लूट पाते ना अपहरण-कर्त्ता फ़िरौती वसूल पाते,ना ही इसके खोने का डर होता ना ही भारी -भरकम बक्से में उठाकर यहाँ-वहाँ ले जाने की जरूरत..और हमारे देश के नेता बड़ा-से बडा़ क्या छोटा-से-छोटा घोटाला भी नही कर पाते और ना ही स्वीस बैंक में अपना काला धन जमा कर पाते..
आपको मेरी बातें बस कोरी खाम खयाली लग रही है ना...! कोई बात नहीं पहले मुझे भी लगती थी कि ये बस मैं कल्पना कर रहा हूँ इसका यथार्थ होना असम्भव तो नही पर बहुत कठिन है..लेकिन अब मुझे ये यथार्थ होता प्रतीत हो रहा है.क्यों और कैसे वो बाद में.. . ! अभी मेरी एक और कल्पना और मेरी दिली इच्छा आपको बतानी बाँकी है._
आज जब भारत दूर-सन्चार के क्षेत्र में पूरी दुनिया को अपना लोहा मनवा चुकी है तो ऐसे मे अभी तक पोलिंग बूथ पर जा जाकर वोट देना कितना सही है.अगर इन्डियन आइडल और सारेगामापा के विजेता का चयन घर बैठे हो सकता है तो घर बैठे वोटिंग भी तो हो सकता है(मोबाईल से करने की मत सोचने लगियेगा).अभी जो मतदान होता है उसमें भले और बुद्धिजीवी लोगों की भगीदारी ना के बराबर होती है.खून-खराबे के डर से उस दिन वो घर से निकलते भी नही.ऐसे मे अगर गुन्डे-बदमाश लोग ही सिर्फ़ मतदान करेन्गे तो नेता भी वैसे ही होन्गे ना.तो अगर कोई मोबाइल जैसा यन्त्र आ जाय जिससे सिर्फ़ उस यन्त्र का स्वामी ही मतदान कर सके वो भी बस एक बार तो सोचिए क्या वोटिंग की सारी गड़बडी़ समाप्त होकर निष्पक्ष चुनाव नही हो जायेगा..!अभी महिला आरक्षण विधेयक को लेकर इतना झगडा़ हो रहा अगर इसकी सुविधा होती तो झगड़ने के बजाय जनता से ही राय ले लेते ना.झुठ-मूठ का जनता की भलाई के नाम पर अपनी राजनीति की रोटी तो नहीं सेंक पाते ना.....
इन दोनॊं की चर्चा मैंनें अभी इसलिये की,क्योंकि दोनों का समाधान एक ही है.अगर एक समस्या का हल हो जाय तो दुसरा अपने आप हल हो जायेगा.घर बैठे वोटिंग करने की आवश्यकता क्यॊं है ये तो आप जानते ही है.चलिय्रे अब मैं बताता हूँ कि नोटों के विकल्प की ओर मेरा ध्यान क्यों गया...
आपने अब तक अगर कभी गौर नही किया है तो एक बार अपने ध्यान में लाइए कि जिस कागज के नोटों और सिक्कों को हम इतने आदर-सम्मान से अपने पोशाक की जेब में रखते हैं,अलमारी में,अनाज की बोरी में या अन्य खाने-पीने की डिब्बों में,अपने आसीसा(तकिए) के नीचे, . . .और पता नही कहाँ-कहाँ..., पर जहाँ भी रखते हैं सबसे अच्छे जगह पर बहुत प्यार से रखते हैं,जो औरतें नहाकर पुजा कर लेने के पहले बिना नहाये हुए अपने बच्चे को भी अपने मे अशुद्ध हो जाने के डर से सटने नही देती है वो भी उस नोट और सिक्के को निःसंकोच छूती है और बिना धोये भगवान को चढा़ देती है; वो नोट कितना गन्दा है.........!
माँस-मछली काटकर बेचने वाला कसाई उसी खून भरे गन्दे हाथ से नोट को पकड़ता है,आलू-चाप,पकौडे़,झालमुढ़ी बेचने वाला उसी सब्जी लगे हाथ से नोट को पकड़ता है(जितनी भी बार मैने यहाँ आलू-चाप खाया है उतनी बार मुझे नोट धोना पडा़ है क्योंकि नोट में इतनी सब्जी लग जाती थी कि...)..और बहुत से ऐसे लोगों को या भिखारियों को देखिएगा जो इतना गन्दा होता है कि उसे छूना तो दूर उसके पास जाना भी लोग पसन्द नही करते पर उसके हाथ का नोट तो लेना ही पड़ता है.ऐसे में नोटों के विकल्प पर ध्यान जाना तो स्वभाविक ही है ना.सोचते थे जिस तरह सबके हाथ मे मोबाइल है वैसे ही सबके पास इस तरह का कोई यन्त्र होता((जिसे गन्दा होने पर धो भी सकते)) जिसके माध्यम से अपना पैसा उस पकौडी़ वाले के यन्त्र मे भेज देते और उसे छूने की जरूरत भी नही पड़ती.वो यन्त्र ऐसा होता कि उसमें अन्य कोई पैसा डाल तो सकता पर निकाल नही सकता.
पर सबसे बडी़ समस्या नजर आती थी भारत की विशाल जनसँख्या क्योंकि इसके लिये हरेक नागरिक को वो यन्त्र उपलब्ध कराना पड़ता जिसका एक अद्वितीय नम्बर (unique No) होता और उसका सुरक्षा कोड उस व्यक्ति का फ़िंगर प्रिन्ट्स होता.इसलिये ये विचार मुझे असम्भव सा प्रतीत होता था पर इसके सम्भव होने के आसार उस दिन दिखाई दिये जब इन्फ़ोसिस और नैस्काम के सहअध्य्क्ष ,ईमैजिन्ग इन्डिया के लेखक और यूनिक आडेंटिफ़िकेसन ऑथिरिटी ऑफ़ इंडिया के चेयर्मेन नन्दन निलेकणि जी राँची आये हुए थे और अपने भाषण में उन्होंने जल्द ही एक-दो साल में भारत के हरेक नगरिक को यूआइडी देने का वादा किया.भारत के १२० करोड़ लोगों यूआइडी नं. दे देना आसान तो नही है लेकिन दुनिया की सबसे बडी़ आइटी कम्पनी अगर ऐसा दावा करती है तो बहुत हद तक आश तो बँध ही जाती है.
ये आश १ अप्रैल को और ज्यादा मजबूत हो गयी जब रष्ट्रपति जी ने इसकी शुरुआत कर दी. यूआइडी नं. के बारे में अपलोगों को पता होगा ही फ़िर भी अगर किन्हीं को जानकारी नही है तो संक्षेप में उन्हें बता देता हूँ - यूआइडी मतलब यूनिक आइडेंटिफ़िकेसन.यानि हरेक के पास अपना एक यूनिक नं. होगा जो उसकी अपनी पहचान होगी.इसकी डुप्लीकेसी सम्भव नही हो पायेगी क्योंकि ये बायोमेट्रिक्स पद्धति पर आधारित होगा.बायोमेट्रिक्स मतलब मापन की ऐसी पद्धति जो जीव-विज्यान(बायोलोजी) पर आधारित हो.यूआइडी बनाने में चेहरा,भौंहें और फ़िंगर-प्रिट्स को शामिल किया जायेगा.ये हरेक लोगों का यूनिक होता है इसलिये इसकी डुप्लीकेसी सम्भव नही हो पाएगी.
अब जरा विचार किजिए कि अगर सब भारतियों को यूआइडी नं. मिल जाएगा तो उससे कितना लाभ होगा..!सबसे पहले तो ये कि कोई भी आतंकवादी(माफ़ करिएगा आतंकवादी नही हमारे पाकिस्तानी और बंग्लादेशी भाई जान) अगर किसी तरह भारत में घुस गया तो तुरन्त पता चल जाएगा.बस डर है कि अभी तक जो करोडो़ बंग्लादेशी भारत घुस चुके हैं और हमारे देश के गद्दर नेताओं ने उनका वोटर आई कार्ड बनवा भी दिया है उनलोगों को U.ID. No. ना मिल जाय.दूसरी बातें जिसे ध्यान में रखकर इसे बनाया जा रहा है वो ये कि इसके बन जाने के बाद उन करोडो़ गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा जिनके पास अभी तक अपनी कोई पहचान तक नही है और जो अब तक वंचित हैं उन लाभों से.यूआइडी के बहुत लाभ हैं उसमे से एक ये भी है कि हरेक गाँव-पँचायत में दूकानदार या कोई अन्य एजेन्ट बनाया जायेगा जो एटीएम मशीन के जैसा कार्य करेगा.पैसे को सरकार व्यक्ति के यूआइडी नं. पर भेज देगी.एजेन्ट के पास यूआइडी आथेंटिफ़िकेसन टर्मिनल या फ़िंगर प्रिंट्स रीडर होगा जो उस व्यक्ति की पहचान कर उसे भुगतान कर देगा..
ये सब तो ठीक है लेकिन अगर इतना कर ही रही है तो इससे थोडा़ से आगे बढ़ जाये और य़ूआईडी नं. का उपयोग कर पैसे ट्रांसफ़र करने वाली मशीन तैयार कर दे और उसमें वोटिंग सुविधा भी जोड दॆ.इस तरह के किसी यन्त्र का आधार यूआइडी नं. पर ही टिका है.यूआइडी नं. के आने के बाद ही इस तरह के किसी यन्त्र के सफ़लता के बारे मे सोचा जा सकता है और बाधा तो यूआइडी नं. तैयार करने मे ही है अगर ये तैयार हो जाता है तो फ़िर इस तरह का यन्त्र बनाना कोई बड़ी बात नही.. चलिये आशा कर सकते हैं कि जिनके दिमाग मे य़ूआइडी बनाने का आइडिया आया है तो पैसे वाली मशीन का भी आइडिया आया ही होगा अगर नही तो भी आज नही तो कल आ ही जायेगा.. काश कि उनतक मेरा ब्लाग पहुँच जाये और जल्दी से वो इस मशीन पर भी काम शुरू कर दें.
अब विचार करते हैं कि इस तरह के यन्त्र की आवश्यकता क्यॊं है.इसके बनने के बाद क्या लाभ होगा...ये ऐसा होगा कि इसमें कितनी राशि किस नं. पर आई या गयी इसका सारा लेखा-जोखा संचित रहेगा.इसे उस यन्त्र के स्वामी के अलावे कोई दुसरा उपयोग नही कर पायेगा.और किस यूआइडी नं. में कितनी राशि है इसका हिसाब-किताब भी सुरक्षित रहेगा जिस तरह अभी मोबाइल मे होता है.तो इससे अगर ये "राशि आदान-प्रदान यन्त्र" गुम भी हो गया तो कोई गम नहीं.अगर कोई बाध्य करके अपने नं. पर पैसा ट्रांसफ़र करवा भी लेगा तो पुलिस उसे आसानी से पकड़ लेगी.इससे किडनैपिंग की समस्या भी खत्म हो जायेगी.और जाहिर सी बात है कि जब एक-एक पैसे का हिसाब-किताब सुरक्षित होगा तो नेतालोग घोटाला भी नही कर पायेंगे.कोई भी व्यक्ति पैसे का गलत उपयोग आसानी से नहीं कर पायेगा अगर करेगा तो पता चल जाएगा.
अगर इस यन्त्र का सपना साकार हो गया तो नोटों का चलन पूरी तरह से खत्म हो जायेगा,उसका महत्त्व एक कागज के टुकडे़ से ज्यादा कुछ नही रहेगा.और वैसे भी इस पद्धति को लागू करने के लिये नोटों का चलन पूरी तरह से खत्म करना होगा क्योंकि नोटों के चलन में रहते ये पद्धति काम नही कर पायेगी.
मैंने तो बहुत कम ही लाभ गिनाये हैं लेकिन इस तरह का यंत्र अगर भारत में आ जाता है जिसमें सिर्फ़ राशि आदान-प्रदान की सुविधा और मतदान की सुविधा हो तो इसी से एक ही साथ भारत की बहुत सारी समस्याओं का निदान हो सकता है और भारत एक अपराधमुक्त देश बन सकता है...क्रृपया एक बार सोच कर देखियेगा......

9 टिप्‍पणियां:

  1. really it is a very nice concept.it is a good thing that someone is thinking about the welfare of our country.keep it up & keep on writing such informative blogs........

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  2. प्रिय अव्यलीक जी,
    ये सब सोचकर तो सच में बहुत अच्छा लग रहा है लेकिन क्या ये सच मे सम्भव हो सकता है..वैसे मुझे ठीक-ठीक पता तो नहीं है लेकिन ये पैसा ट्रांसफ़र वाला सिस्टम विदेशों में पहले से है..मैं तो ज्यदा सोच नही पायी पर हो सके तो इसके और २-४ फ़ायदे बताइए ना.इसके फ़ायदे के बारे में पढ़कर अच्छा लगा.

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  3. maine aapka likha hua pura padha hai per kya ye kbhi possible hoga aaj yha insaan k liye paise ki value kisi aam insaan se khi badh kr hai aapne jo kuch b likha bhut acha likha ye us waqt jyada acha lgega jb ye smbhav ho paega.abhi sirf ye ek sunder sapne jaisa hi lgta hai.ye concept padhne mai bhut dilchasp hai.ye soch kr bhut acha lga ki aap itna sochte ho jo hmari country k welfare se juda hai.mujhe such mai ye bhut acha lga.ISHWER KARE YE SAPNA SAKAR HO ..

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  4. राहुल जी,ये बात तो मैने अपने लेख मे लिख ही दिया है कि ये बात मैं बहुत दिन से सोच रहा रहा था लेकिन पहले ये मुझे भी असम्भ्व सा लगता था इसलिये उस समय मैंने इसपर कोई लेख नहीं लिखा था पर जब यूआईडी नं. के आने की सम्भावनाएँ इतनी ज्यादा हो गयी तब मैंने ये लेख लिखा है.ज्यादा चुनौती वाला काम तो यूआईडी का आना है.अगर यूआईडी आ जाता है तो इसकी भी आशा लगा सकते हैं हम क्योंकि ये यूआईडी से ज्यादा आसान है.और अंजली जी ने बताया ना विदेशों मे इस तरह के प्रयोग हो रहे है.शायद दक्षिण अफ़्रीका और फिलिपिंस जैसे कुछ देश हैं जहाँ प्रायोगिक रुप मे है ये पर पूरी तरह नही..
    दूसरे देशों की छोडि़ये अपने देश की ही बात करिये.६-७ साल पहले किसी ने सोचा होगा कि हरेक के पास मोबाईल होगा,घर-घर में डी.टी.एच होगा जिसमें लोग मूवी ‘ऑन डिमांड देखेंगे.?.४-५साल पहले किसी ने एटीएम के बारे में सोचा था..?नही ना.?लेकिन देखिये अचानक साल भर में ही ये कैसे छा गया पूरी भारत में.एटीएम हमारे देश भारत की ही देन है.कुछ सालों से भारत आइटी उद्योग में पूरे विश्व का प्रतिनिधित्व कर रही है..तो अब इस तरह के आविष्कार होते रहें तो इसमें आश्चर्य की बात नही.

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  5. your thinking is ennovative. i m surprised to know about application of U.ID.NO. if it would be happen then it would be a great break-through for INDIA
    it would help INDIA to combat terrorism.
    keep it up my best wishes to you.

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  6. चलो इससे और कोइ फ़ायदा हो या ना हो कम-से कम महत्मा जी का मुह देखना तो नही पडे़गा ना.जब भी नोट निकालो साला उसी का दर्शन होता है..

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    1. मेरे भाई मै भी साले का मुह नही देखना चीहता लेकिन क्याकरे अब आप का सपना सच हो तो इस झंझट से मुक्ति मिले

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  7. Awyaleek Sir,

    Please develop such a system. That would be great brother.
    Thanks

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